Monday 16 May 2011

जनता की जेब पर डाका डालने का असली कारण


जैसे ही तेरह मई को पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव नतीजों की घोषणा हुई ,उसके अगले ही दिन केन्द्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की छत्रछाया में तेल कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर पांच रूपए का इजाफा करके देश में हाहाकार मचा दिया. नयी दरें कल पन्द्रह तारीख से लागू कर दी गयी हैं . जनता ने और विपक्षी दलों ने भारी हल्ला मचाया , मूल्य वृद्धि के विरोध में सायकल रैली , बैलगाड़ी रैली ,रिक्शा रैली और भी न जाने कितनी तरह के प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शन हुए .
केन्द्र सरकार और तेल कंपनियों के मालिकान यह सब देख कर अपने एयर कंडीशन कमरों में ठहाके लगाते रहे . क्यों न लगाएं ? अरे भाई यह जनता है . उसे इस देश में रहना है या नहीं ? आखिर कहाँ जाएगी जनता बेचारी ? रो-धो कर चुप हो जाएगी ! अब खबर आयी है कि तेल मंत्रालय ने डीजल की कीमतों में कम से कम चार रूपए प्रति लीटर और रसोई गैस में २५ रूपए प्रति सिलेंडर वृद्धि करने का प्रस्ताव दिया है, जिस पर विशेषाधिकार प्राप्त मंत्री समूह की इस हफ्ते होने वाली बैठक में फैसला ले लिया जाएगा . ऐसा केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने रविवार को अपने कोलकाता प्रवास के दौरान कहा. उधर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने डीजल की कीमतों को भी नियंत्रण-मुक्त करने ,यानी खुले बाज़ार के हवाले कर देने का प्रस्ताव रखा है .
संकेत साफ़ है . पहले पेट्रोल को बाज़ार की ताकतों के हवाले किया गया और अब डीजल की बारी है. बाजार की ताकतें सिर्फ बाज पक्षी की तरह जनता को अपना मासूम शिकार समझ उसे ताकती रहती हैं और जब जनता पर झपट्टा मारती हैं ,कोई कुछ नहीं कर पाता. कांग्रेस जब १९९१ में केन्द्र की सत्ता में आयी और मनमोहन सिंह को जब नरसिंह राव सरकार में पहली बार वित्त मंत्री बनाया गया तब यही दलील दी गयी कि वे एक मंजे हुए अर्थ शास्त्री हैं और देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी पर ले आएँगे . क्या हुआ ,सब जनता ने देख लिया ! अब यही मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री है और अपने अर्थ शास्त्र के ज्ञान से देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़वा कर जनता से न जाने किस जन्म का बदला ले रहे हैं ? सब जानते हैं कि डीजल-पेट्रोल की कीमतों में इजाफा होने पर यात्री किराए और माल-भाड़े में भी वृद्धि होगी . जब माल परिवहन की लागत बढ़ेगी तो अनाज ,शक्कर , खाद्य-तेल ,कपड़ा ,.बिल्डिंग -मटेरियल आदि हर सामान की कीमत भी बढ़ेगी ही. क्या आम जनता के जीवन पर इसका असर नहीं होगा ? तनख्वाह और मजदूरी चाहे कितनी ही क्यों न बढा दी जाए , महंगाई डायन सब छीन कर ले जाती है. वैसे भी जब से सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांगेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना कर यू पी.ए.सरकार का गठन किया है , तब से लेकर आज करीब सात वर्ष में हर तीसरे-चौथे महीने डीजल-पेट्रोल के दाम बढते रहे हैं . अटल जी १९९९ से २००४ तक पांच साल प्रधानमंत्री रहे , तब तो ऐसा अंधेर नहीं होता था . अब देश के भाग्य में ,जनता के माथ पर कांग्रेस का हाथ लिखा है, तो सब भोगना ही पड़ेगा . वैसे भी एक लाख ७६ हजार करोड का टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला और करीब अस्सी हजार करोड का कॉमन वेल्थ खेल घोटाला हो चुका है . जनता की इतनी भारी भरकम दौलत सफेदपोश डाकुओं ने लूट कर अपना घर भर लिया है. शायद इसकी भरपाई के लिए केन्द्र सरकार जनता की जेब पर बार-बार डाका डाल रही है .मुझे तो लगता है इस डाकेजनी का यही असली कारण है. आपका क्या कहना है ?
                                                                                                    भारत प्रहरी